पिछले 6 महीनों में भारत ने दो बड़े आंदोलन के रूप में दंश जेलें है। जिसमे अगुवाई तथाकथित दलित तो
कई तथाकथित स्वर्ण कर रहे थे। किसने इन्हें यह स्वतंत्रता दी दलित और स्वर्ण का ठप्पा लगाने की। किसने
समाज का ताना बाना बिखेरने की चेष्टा की। कौन यह जानता है कलयुग में ईश्वर के रूप में अवतार सज्जन
शक्तियों का संघठन होगा। कौन कंस है जो इस अवतार को पैदा होते ही समाप्त कर देना चाहता है। कौन
है जो सामाजिक समरसता को चुनौती देने के लिये तैयार है। कौन है ऐसी दुर्जन शक्ति।
कोई भी हो, हम इन दुर्जन शक्तियों का कार्य सफल नहीं होने देंगे। हम यह जानते है की संघटित हिन्दू
सुरक्षित राष्ट्र। हम मार्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम की तरह भुजा उठाकर प्रण करते है मन, मस्तिष्क,समाज से
रावण का दमन करेंगे। अब मौक़ा आपका एवं हमारा है जब सम्पूर्ण समाज एक संघठित शक्ति के रूप में
विजयदशमी के दिन पथ संचलन में कदम से कदम मिलाकर चले और दुर्जनो शक्तियों को बता दे की:
“नव चैतन्य हिलोरें लेता जाग उठी है तरुणाई।
हिंदुराष्ट्र निज दिव्य रूप में उठा पुनः ले अंगड़ाई।“
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